सरस्वती कुंड और बिना पूंछ वाला चूहा।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं देखता हूँ सब सो रहे हैं,कमरे में घुप्प अंधेरा है।ईंट हटाते ही हवा के झोंके से खिड़की खुद ब खुद खुल जाता है।औ ठंडी हवा का एक झोंका अंदर आता है।लड़कियां अब भी सो रही हैं,खिड़की खुलते ही ठंडी हवा के साथ रौशनी की एक किरण अंधेरे कमरे को रौशन कर देता है।मैं बाहर निकलना चाहता हूं,लेकिन बारिश हो रही है।बारिश की वजह से अंदर ही पड़ा रहता हूँ।
थोड़ी देर बाद कुछ लोग कमरे में आ जाते हैं ।यह परिवार दो दिन पहले यहाँ आये हैं और दूसरे धर्मशाला में रुके हुए थे।आज सुबह मंदिर दर्शन के लिए आते हैं लेकिन बारिश की वजह से हमारे कमरे में घुस आते हैं उस परिवार के साथ एक लड़की है जिसकी उम्र करीब 19 साल होगी उसकी नज़र कैमरे पर पड़ती है।वह मुझसे कहती है क्या मैं कैमरा देख सकती हूं मैंने उसे अपना कैमरा दे दिया वो कहती है आपके द्वारा खिंचे गये चित्र बेहद खुबसुरत हैं।
मुझे भी फोटोग्राफी में दिलचस्पी है मैं क्या करूँ,क्या आप मुझे सजेस्ट कर सकते हैं ,मैंने उससे कहा आप पहले अपनी पढ़ाई पूरी करो,तबतक एक आदमी चाय की केतली लेकर अंदर आ जाता है।चाय की आवाज़ से लड़कियां जग जाती हैं,
उन्हें रात भर ठंड की वजह से नींद नही आई है।
सुबह को आरती शुरू हो गयी है लेकिन बिना नहाए आरती में जाना मना है,इतनी ठंड में नहाना हमारे वश का नही है।हम चुपचाप चाय पीने लगते हैं थोड़ा बहुत बचा हुआ चूड़ा मिक्सचर के साथ मिलाकर हमलोग खा लेते हैं,
उस लड़की के साथ के लोग उसके फोटोग्राफी सीखने पर उसका मजाक बना रहे हैं।हमने उन्हें भी चूड़ा लेने को कहा पर उन्होंने मना कर दिया।बारिश अब भी हो रही है,मै खिड़की के प्रकाश का उपयोग कर उन सबके पोर्ट्रेट बनाता हूँ,और बीच बीच मे उनके सवालों के जवाब भी देता रहता हूँ।पसीने बारिश और धुंवे का मिलाजुला गन्ध मेरे शरीर से आ रहा है।
पूरे बदन पर कुत्तों के रोएं लगे गये हैं,पता नही मनुष्यों के अभाव में यहाँ शायद कुत्ते सोते होंगे,धीरे धीरे हम अपना सामान समेटने लगते हैं।वोलोग उठकर बाहर जाने लगते हैं।हमलोगों को भी निकलना चाहिए ऐसा बोलकर मैं बाहर निकल जाता हूँ,बारिश थम गई है पूरी यात्रा में आज पहली बार धूप निकला है।धूप देखकर अच्छा लग रहा है,हम सब मंदिर चले जाते हैं,मंदिर में एक लड़का मुझे टोकता है।
भगवान को इतना गौर से नही देखना चाहिए।मैं टीका लगवाकर बाहर निकल जाता हूँ लड़कियां फ़ोटो शूट कराने में व्यस्त है।मंदिर से बाहर निकलते ही उनकी फरमाइशें शुरू हो जाती है।उनका एक ग्रुप फ़ोटो निकालकर मैं आगे बढ जाता हूँ,तभी एक लड़की बोलती है रात हमने बिना पूछ वाला चूहा देखा था।वह किसी किसो को ही दिखता है जो लोग लकी होते हैं।मैंने कहा हां ये सच है मैं अनलकी हूँ,क्या कर सकता हूँ।
मंदिर की एक तस्वीर निकालकर ज्योति पंडित से कहती है,ब्रह्म तालाब कितनी दूर है मुझे जाना है पंडित कहता है वहां स्त्रियों का जाना मना है।और एक ब्रह्मकमल ज्योति को दे देता है।ज्योति उसे रख लेती है।और कहती है भैया चलो सरस्वती कुंड तक चलते हैं।मैं उसके पीछे पीछे चलने लगता हूँ साथ ही वह पूरा परिवार भी हमारे साथ हो लेता है,एक कुत्ता हमारे आगे आगे चल रहा है।वह पथप्रदर्शक की भांति हमें रास्ता दिखाता है।
हम चलते जाते हैं।रास्ते मे कीचड़ ही कीचड़ है।फिसलन है।सम्भलकर चलना होगा एक दूसरे का हाथ पकड़े हम बढ़ते जाते हैं यह इलाका फूलों से लदा हुआ है।फूलों की घाटी जैसा रंग बिरंगे फूल खिले हैं।उसकी खुशबू हवा में तैर रही है।हमलोग सरस्वती कुंड तक पहुंच जाते हैं।यहाँ धुंध है।कुंड में फूलों की छाया पड़ रही है।कुत्ता वहीं बैठ जाता है।लड़कियां तस्वीरे खिंचने,खिंचवाने में व्यस्त हैं।यह कुंड बेहद खूबसूरत है।
दूर एक आदमी अपने कुत्ते के संग चला जा रहा है।हम थोड़ी देर वहां रुकते हैं,और फिर वापिस मंदिर की ओर बढने लगते हैं।कुत्ता आगे आगे चल रहा है।धूप जा चुकी है।मंदिर पहुंचकर हम पंडित से विदा लेते हैं और अपना अपना सामान लेकर वहां से आगे बढ़ जाते हैं।
क्रमशः
©आत्मानन्द.